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Jannat Nursery Sacred Plants Collections for you

आँवला/Amla

  • भगवान विष्णु का साक्षात स्वरूप। सभी देवी देवताओं का वास होता है। सुख, समृद्धि, संतान, सौभाग्य व कष्ट निवारण हेतु पूजन। आँवला नवमी को इसके पूजन से अक्षय सौभाग्य की प्राप्ति।
  • आँवला नवमी के दिन महिलाएं सुबह से ही स्नान ध्यान कर आँवला के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में मुँह कर बैठती है। वृक्ष की जड़ों को दूध से सींचकर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटा जाता है।
  • बुद्धि, आँख व बाल हेतु विशेष लाभकारी। आयुर्वेद में विशेष महत्व विटामिन सी अत्यधिक मात्रा में पायी जाती है।
  • ज्योतिष में बुध व शुक्र ग्रह से सम्बन्धित ।
  • औषधीय गुणों से भरपूर ।

अशोक/Ashok

  • देवी सीता को रावण ने अशोक वाटिका में रखा था। इसीलिए इसे सीता अशोक के नाम से भी जाना जाता है।
  • इसके वंदनवार व तोरण को मुख्य द्वार पर लगाने से नकारातमक शक्तियां घर में प्रवेश नहीं कर पाती।
  • शोक से मुक्ति प्रदान करने वाला। काम देव (प्रेम के देवता) से सम्बन्धित ।
  • सुख, शान्ति व समृद्धि बनी रहती है। अकाल मृत्यु नहीं होती।
  • मांगलिक कार्यों में अशोक के पत्तों का प्रयोग किया जाता है।
  • यह सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
  • हिन्दू, बौद्ध व जैन धर्म में पूजित ।
  • औषधीय गुणों से भरपूर ।

केला/Banana

  • श्री हरि का साक्षात स्वरूप माना जाता है। लक्ष्मी नारायण का वास। गणेश व विष्णु से सम्बन्धित शुभ कार्यों पर द्वार पर लगाया जाता है। भगवान विष्णु व देवी लक्ष्मी को केले का भोग लगाया जाता है। समृद्धि में सहायक।
  • देवताओं के लिए केले के पत्ते पर ही भोजन परोसने की परम्परा है। पत्तियों का उपयोग प्रसाद वितरण में। शुभ कार्यों में केले के पौधे का मंडप और तोरण बनाने की परम्परा है।
  • यज्ञ, हवन व पूजन में केले का प्रयोग होता है। केले के पूजन से बृहस्पति संबंधी समस्यायें दूर हो जाती है।
  • सप्त ऋषियों के कहने पर माँ पार्वती द्वारा प्रारम्भ कदली व्रत में केले के पेड़ की पूजा की जाती है।
  • पौष्टिक व औषधीय गुणों से भरपूर ।

वट वृक्ष या बरगद/Bargad

  • भगवान कृष्ण का निवास। बरगद को देखना साक्षात शिव का दर्शन करना माना जाता है। इसके नीचे सावित्री ने मृत्यु को जीतकर सत्यवान का पुनर्जीवन प्राप्त किया था इसीलिए वट सावित्री (पति की दीर्घायु हेतु) त्यौहार में बरगद का पूजन किया जाता है।
  • जैन तीर्थकर ऋषभदेव ने अक्षय वट (प्रयाग) में तपस्या की थी। अधिकांश मन्दिरों में सामने स्थित छायादार वृक्ष बरगद का ही होता है।
  • कथानुसार देवी सीता ने अक्षय वट को अमर होने का वरदान दिया था और कहा था किसी भी मौसम में उसका एक पत्ता भी नहीं झड़ेगा।
  • निःसंतान जोड़े द्वारा पूजने से संतान प्राप्ति की संभावना बढ़ जाती है। प्रजनन क्षमता बढ़ाता है। औषधीय गुणों से भरपूर ।
  • राष्ट्रीय वृक्ष। ग्रामीण जीवन का केन्द्र बिन्दु । अनेक पंचायतों का गठन इसके नीचे हुआ।

बेल/Beal Patra

  • धन-वैभव हेतु बेल का पेड़ लगायें क्योंकि मान्यता यह है कि समुद्र मंथन के बाद जब लक्ष्मी जी प्रकट हुई तब वो देव-दानव संघर्ष के कारण बेल के वृक्ष के नीचे कुछ देर के लिए छिप गई थीं। तभी से यह दिन श्री वृक्ष नवमी के रूप में मनाया जाने लगा।
  • शिवपुराण में इसकी महिमा वर्णित है। बेल की पत्तियाँ त्रिपत्ररा हैं। मान्यता है कि भगवान के तीन कार्यो संरक्षण, निर्माण एवं विनाश का प्रतीक है।
  • साथ ही भगवान की तीन आंखें हैं। शिव पूजा हेतु बेलपत्र अनिवार्य है। इसीलिए इसे मंदिरों में लगाया जाता है।
  • औषधीय गुणों से भरपूर। इसकी तासीर शीतल होती है। गर्मी से बचने के लिए बेल का शर्बत लाभकारी होता है।
  • भगवान शिव से सम्बन्धित/पत्तियाँ (बिल्व) शिव को समर्पित की जाती हैं।

हरसिंगार/Harsingar

  • विष्णु को प्रिय, लक्ष्मी व शिवपूजन में भी महत्व। सुख समृद्धि लाता है। इसका जन्म समुद्र मंथन से हुआ था जिसे इन्द्र ने स्वर्ग ले जाकर अपनी वाटिका में रोप दिया था। जिसे कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के कहने पर इन्द्र से युद्ध कर द्वारका लाये थे।
  • पाँडवों के अज्ञातवास के समय कुन्ती द्वारा शिव पूजन के लिये श्री कृष्ण ने इसे द्वारका से लाकर बाराबंकी के गांव बोरोलिया (किन्तूर) में लगाया था। ये वृक्ष आज भी वहाँ है।
  • इसके फूल सफेद, सुन्दर व सुगन्धित होने हैं जो रात में खिलते हैं और सुबह मुरझा कर गिर जाते हैं। फूल की डंडी नारंगी रंग की होती है।
  • गठिया, बवासीर, मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, स्त्री व त्वचा रोग, पेट, अस्थमा, बाल सम्बन्धी दवाओं का निर्माण। आयुर्वेद में बहुत महत्व।
  • अन्य नाम पारिजात, शेफाली, शिउली, प्राजक्ता, नाइट जेस्मिन, रात की रानी।

कदम्ब/Kadam

  • कृष्ण इस पर बैठकर बांसुरी बजाया करते थे। अनेक वृतान्त कदम्ब से जुड़े हैं जैसे कदम्ब के वृक्ष से कालिया नाग पर छलांग लगाने, गोपियों के वस्त्र चुराने या सुदामा के साथ चने खाने का आदि। भगवान कृष्ण ने कालिया लाग के वध करने के पश्चात कदम्ब से ही अपने जहर को दूर किया था।
  • बाणभट्ट के प्रसिद्ध काव्य कादम्बरी की नायिका कादम्बरी का नाम भी कदम्ब वृक्ष के आधार पर है।
  • औषधीय गुणों से भरपूर । आर्युवेद में विशेष महत्व । सांप काटने पर बहुत कारगर ।
  • भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा। काम देव, विष्णु, पार्वती, काली को प्रिय ।

गुड़हल/Hibiscus

  • कानूनी समस्या, सम्पत्ति में बाधा हो तो संकट दूर हो जाते हैं। गुड़हल का फूल जल में डालकर कर सूर्य का अर्द्ध देने से आंखों व हड्डी सम्बन्धी समस्या दूर हो जाती है और यश बढ़ता है। गुड़हल का पौधा ज्योतिष में सूर्य और मंगल ग्रह से सम्बन्ध रखता है।
  • माँ दुर्गा के चरणों में अर्पित किये जाने वाले लाल रंग के गुड़हल के पुष्प को शक्ति, सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
  • औषधीय गुणों से भरपूर। अपच, बेचैनी, स्कर्वी, एनीमिया, मधुमेह, रक्तचाप आदि रोगों में लाभदायक।
  • अन्य नाम जवा कुसुम, हिबिसकस के नाम से भी जाता जाता है।

आम/Mango

  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आम हनुमान जी का प्रिय फल है.  वहां हनुमान जी की विशेष कृपा होती है. उस जगह पर नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव नहीं पड़ता.
  • शुभ अवसर पर आम के पत्तों की लड़ी प्रवेश द्वार पर लटकाया (वंदनवार व तोरण के रूप में) जाता है।
  • कलश स्थापना के दौरान आम के पत्ते नारियल के साथ कलश पर रखे जाते हैं।।
  • बसन्त पंचमी के दिन सरस्वती को आम के पेड़ के बौर चढ़ाये जाते हैं।
  • हवन में आम की लकड़ी (समिधा) का प्रयोग होता है।
  • आम के पत्तों को पवित्र माना गया है।
  • बौद्ध धर्म में भी पूज्य ।

मदार/Madar

  • शिव को अति प्रिय । गणेश का वास। मदार के फूलों की माला शिव को चढ़ाई जाती है। बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में इसकी खेती की जाती है।
  • श्वेत मदार घर के दरवाजे पर लगाने से नजर टोना, तंत्र-मंत्र के दुष्प्रभाव, बुरी आत्माओं, दुष्ट ग्रहों का प्रभाव नहीं पड़ता ।
  • सौभाग्यवर्धक है। सुख, शान्ति व समृद्धि बनी रहती है। सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है।
  • यह श्वेत (श्वेतार्क, सफेद पुष्प) व श्याम (रक्तार्क, बैंगनी पुष्प) दो प्रकार का होता है।
  • पत्ती, जड़, फूल तथा दूध का औषधियों के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • अन्य नाम – अर्क, आंक, अकौआ

पीपल/Peepal

  • पीपल को मूर्तिमान विष्णु के रूप में पूजा जाता है। कृष्ण से सम्बन्धित। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं ‘हे पार्थ वृक्षों में मैं पीपल हूँ।’ इस वृक्ष के नीचे ही कृष्ण की मृत्यु हुई थी, जिसके पश्चात् कलियुग का आरम्भ हुआ था। स्कन्द पुराण के अनुसार इसमें सभी देवताओं का वास माना जाता है। ब्रह्मा (जड़), विष्णु (तना) एवं शिव (पत्ती) का निवास (त्रिमूर्ति का प्रतीक)। इसीलिए मंदिर परिसर में इसे अवश्य लगाया जाता है।
  • लाल रंग का धागा वृक्ष के चारों ओर लपेटकर पूजा की जाती है। परिक्रमा से काल सर्प योग से मुक्ति मिलती है। परिक्रमा कर जल अर्पण करने से दरिद्रता व दुर्भाग्य का नाश होता है। इसके दर्शन-पूजन से दीर्घायु व समृद्धि की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि पीपल लगाने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। इसे काटना अशुभ माना जाता है।
  • औषधीय गुणों से भरंपूर। अधिकांश वृक्ष दिन में ऑक्सीजन छोड़ते हैं और कार्बन डाई ऑक्साइड ग्रहण करते हैं जबकि रात में अधिकांश वृक्ष कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। इसीलिए रात में वृक्ष के निकट नहीं सोना चाहिए। पीपल ऐसा अनोखा पेड़ है जो 24 घंटे ऑक्सीजन ही देता है और आरोग्यवर्धक वातावरण के निर्माण में सहायक है।

रुद्राक्ष/Rudraksha

  • रूद्राक्ष के एक कोने से दूसरे कोने तक धारियां खिंची रहती हैं। इन्हें मुख कहा जाता है। जिस रूद्राक्ष में स्वयं छिद्र होता है वह चाहे किसी भी मुख का हो श्रेष्ठ होता है। सामान्यतया एक मुखी से चौदह मुखी तक कहीं-कहीं 27 मुखी तक (एक मुखी सर्वश्रेष्ठ, पंचमुखी सबसे सुरक्षित)। चने के आकार रूद्राक्ष अघम, बेर के आकार का मध्यम एवं आँवले के आकार का उत्तम माना जाता है।
  • रूद्राक्ष के पूजन से भगवान शिव की कृपा और सकारात्मक ऊर्जा, सुख समृद्धि बनी रहती है। मान्यता है हृदय रोग व रक्तचाप नियंत्रित रहता है। पौराणिक कथानुसार जब भगवान शिव ने त्रिपुर नामक असुर के वध के लिये अघोर अस्त्र का चिन्तन किया तब उनके नेत्रों से गिरने वाले आँसुओं से रूद्राक्ष के वृक्ष की उत्पत्ति हुयी।
  • 50 से 200 फीट ऊँचा। सफेद फूल। गोल आकार के फल के अंदर गुठली के रूप में रूद्राक्ष होता है। भारत में बिकने वाले 80 प्रतिशत रूद्राक्ष फर्जी (भद्राक्ष एक और फल की गुठली) होते हैं। रुद्राक्ष धारण करने के लिए सोमवार का दिन शुभ माना जाता है। रात में सोते समय रुद्राक्ष उतार कर सोना चाहिए।

शमी/Shami

  • शमी को न्याय के देवता शनि को प्रसन्न करने एवं शनि की पीड़ा से मुक्ति हेतु पूजा जाता है। इसके पूजन से शनि की साढ़े साती और ढैय्या का प्रभाव कम हो जाता है और समृद्धि आती है। भगवान शिव व गणेश को भी प्रिय ।
  • शमी शनिवार के दिन मुख्य द्वार के बायीं ओर लगायें (घर के अन्दर नहीं) हर शनिवार पौधे के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलायें। प्रातः शमी का दर्शन शुभ माना जाता है। दशहरे पर शमी पूजन का बहुत महत्व माना जाता है।
  • श्री राम ने लंका के आक्रमण से पूर्व शमी की पूजा की थी। पांडवों ने अज्ञातवास में अपने सारे अस्त्र-शस्त्र इसी वृक्ष में छिपाये थे। शमी की जड़ को यदि शनिवार के दिन काले कपड़े में बांह या गले में धारण किया जाए तो यह नीलम जैसे महंगे रत्न के समान है।
  • औषधीय गुणों से भरपूर ।

तुलसी/Tulsi

  • जिस घर में तुलसी की पूजा होती है। देवी लक्ष्मी उस घर को छोड़कर नहीं जाती हैं अर्थात् सुख समृद्धि बनी रहती है। तुलसी को देवी लक्ष्मी का पर्याय माना गया है और इसीलिए घर के आंगन में इसे रखने की परम्परा रही है। यह सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
  • भगवान विष्णु से सम्बन्धित । तुलसी से भगवान विष्णु के विवाह की परंपरा है जिससे विवाह की शुभ तिथियों का आरम्भ होता है। प्राण त्यागते समय मनुष्य के मुंह में तुलसी पत्र रखने की परम्परा है।
  • रामा तुलसी हरी व बड़ी पत्तियों वाली। श्यामा या कृष्णा तुलसी गाढ़ी हरी पत्तियों वाली विष्णु पूजा में प्रयुक्त । शरीर, बुद्धि व आत्मा को पावन करने के लिये तुलसी के जड़ों से बनी माला का प्रयोग होता है।
  • औषधीय गुणों से भरपूर ।